Sunday 2 September 2012

एक दीवानी नज़र



एक दीवानी नज़र कितना देख सकती है
तुमको क्या समझे थे  क्या तुम निकले

मत बताना किसी  को कि  मर चुका हूँ मैं
सूनी राहों से जनाज़ा मेरा गुमसुम निकले

मेरी ख्वाहिश है मेरी मौत पे रोये न कोई
सिसकी भी अगर  ले  तो वो मद्धम निकले

माहताब के मानिंद चमकता रहे चेहरा तेरा  
जब भी देखूं मैं  तेरी आँख न पुरनम निकले



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