Saturday 1 September 2012

सरहदें बदलतीं हैं



क्या बताएं कि कहाँ तक है  दिल की दुनिया
रोज़ ही सरहदें बदलतीं हैं
आज मेरे हो  कल किसी और के हो सकते हो
बारहा चाहतें बदलती हैं
जब भी भर जाता है दिल आँख छलक जाती है
इस तरह हसरतें निकलती हैं
ज़रा जल जाएँ तो फिर कितना तड़पते हैं लोग 

शमाएँ सारी रात जलतीं हैं   

No comments:

Post a Comment