Tuesday 28 August 2012

हम सादगी का तेरी

हम सादगी का तेरी करें किस तरह बयाँ
मासूमियत ही जैसे इंसान बन गयी है

कुछ पल के लिए आयी आँखों में तेरी सूरत
अब रातो दिन की जैसे महमान बन गयी है

एक तेरी आरज़ू भी कर ली  है जब से दिल ने
मेरी हर ग़ज़ल का जैसे उन्वान बन गयी है

मिलने से पहले तुझसे अपना वजूद भी था 
अब तू  ही ज़िंदगी की पहचान बन गयी है

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