Tuesday 31 January 2012

पूनम का चाँद

भूखा हो पेट तो पूनम का चाँद
एक रोटी की तरह दिखता है
शीशा ऐ दिल भी टूटने के बाद
सिर्फ कौड़ी के मोल बिकता है

ग़र जो बाहोश लिखूं अपना नाम
उंगलियाँ बारहा बहकती हैं
बंद आँखों से भी ये मेरा हाथ
क्यूँ तेरा नाम सही लिखता है

जब भी आया है यादों का सैलाब
रोक पाया है कहाँ साहिले दिल
भीगी पलकों से निकल कर आंसू
ख़ुश्क रुखसारों पे कब रुकता है
 

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