Monday 31 October 2011

छू लेंगे आसमां

जब भी उठाई आँख तो हर बार ऐसा लगता रहा
कि छत से हाथ बढ़ाएंगे और छू लेंगे आसमां

उम्र भर कोशिशें नाक़ाम हुई हैं क़रीब आने की
बड़ा कम फ़ासला था तेरे मेरे दिल के दरमियाँ

कहाँ से आज चले आये हैं ये  लोग मेरी महफ़िल में
कल जो रोया तो  किसी दोस्त का कंधा न था यहाँ

ताना मुझे
तुम आज की शिकस्त का  क्यूँ देते हो 
यहीं एक दिन मेरा  ये  दिल भी  हुआ था धुआं धुआं 


 
 

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