Wednesday 6 November 2013

रोने से न गया तेरा ग़म

रोने से न गया तेरा ग़म
मजबूर हो के हंसना पड़ा

छिपाये रखना था जो  राज़
 सरे बज़्म उसे कहना पड़ा

 क़तरा तक़दीर बदल न सके
उसने  रक्खा वैसे रहना पड़ा

 उम्र भर डरते थे बरसातों से
आज  सैलाब  मॆं  बहना  पड़ा 

No comments:

Post a Comment