Sunday 16 June 2013

कुछ इस तरह गए तुम

कुछ इस तरह गए तुम मेरी ज़िंदगी में आके
ठहरे हुए पानी को हिला दे कोई पत्थर

जितनी भी कोशिशें कीं लहरों ने बिछड़ने की
हर बार उतना ही बड़ा होता गया सागर

औरों से पूछते हो क्या मैं अभी ज़िंदा हूँ
बेहतर है मेरे घर में खुद देख लो आकर

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