Sunday 29 May 2011

चमकता भारत

भूखे लोगों ने बनाए हैं बुत ये पत्थर के
तुम समझते हो हुकूमत ने बदला है शहर
तो जाओ देखलो जा कर के उसकी बस्ती में
आज भी टूटा पड़ा है उस मजदूर का घर
वो जो बैठा है पहने हुए सफ़ेद लिबास
बंद सीने में उसके है सियाह रात सा दिल
सरे बाज़ार लुटी थी जो तिजोरी शाही
उसकी साजिश में यही आदमी था खुद शामिल

खड़ा है सामने एक बूढ़ा और मांगता है भीख
हुई तरक्की का अंजाम है यही सूरत
जंगे आज़ादी के लिए खून बहाने वालो
ढूंढ़ लो इसकी पसलियों में चमकता भारत
 

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