वो आते हैं मिलते हैं मगर बेरुखी के साथ
करते हैं इंतज़ार जिनका सारी सारी रात
हमको तो राहे इश्क़ में बस सिसकियाँ मिलीं
होता है इस तरह क्या हर एक आदमी के साथ
एक अश्कों का दरिया है ये मेरी ज़िंदगी
मुझसे न सही आँख से करते तो मुलाक़ात
कह दो ये गुंचों से न निकलें ज़मीन से
करते हैं इंतज़ार जिनका सारी सारी रात
हमको तो राहे इश्क़ में बस सिसकियाँ मिलीं
होता है इस तरह क्या हर एक आदमी के साथ
एक अश्कों का दरिया है ये मेरी ज़िंदगी
मुझसे न सही आँख से करते तो मुलाक़ात
कह दो ये गुंचों से न निकलें ज़मीन से
ये काँटों का मौसम है अब जा चुकी बरसात
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