नहीं मिलती है किसी से राहत
निगाह बार बार मिलती है
नहीं हासिल है ज़ख्म को मरहम
तसल्ली बेशुमार मिलती है
धूप निकली है ज़माने में हमें
रोशनी भी उधार मिलती है
उठती मौजों में क्या करें हम भी
ज़िंदगी दरिया पार मिलती है
निगाह बार बार मिलती है
नहीं हासिल है ज़ख्म को मरहम
तसल्ली बेशुमार मिलती है
धूप निकली है ज़माने में हमें
रोशनी भी उधार मिलती है
उठती मौजों में क्या करें हम भी
ज़िंदगी दरिया पार मिलती है
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