हर होठ चाहता है छलकते हुए पैमाने
क्या मोल हैं जहां में एक खाली सुराही का
रोने पे बंदिशें हैं सब कुछ कहो ज़ुबां से
अब ये सिला मिला है अश्क़ों की गवाही का
जो आज हो गया है ऐसा ही तो होना था
एहसास था पहले से मुझे अपनी तबाही का
मेरी नज़र बुरी है सब लोग ये कहते हैं
तोहफा दिया जहां ने ये पाक निगाही का
No comments:
Post a Comment