बेहतर है दरिया को अपना बना लो
किनारों का क्या जाने कब टूट जाएँ
खुद अपने ही बाजू से दुनिया संभालो
सहारों का क्या जाने कब छूट जायें
तनहा भी जीने की आदत तो डालो
अपनों का क्या जाने कब रूठ जाएँ
मेरे दोस्तों मेरी मैय्यत उठालो
किनारों का क्या जाने कब टूट जाएँ
खुद अपने ही बाजू से दुनिया संभालो
सहारों का क्या जाने कब छूट जायें
तनहा भी जीने की आदत तो डालो
अपनों का क्या जाने कब रूठ जाएँ
मेरे दोस्तों मेरी मैय्यत उठालो
क्या उनका भरोसा वो आंयें न आयें
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