Thursday, 22 November 2012

कुछ तुमने भी बदनाम किया

थे पहले से भी ज़ख्म कई फिर तेरी नज़र ने काम किया
कुछ तो हम भी दीवाने  थे कुछ तुमने भी बदनाम किया

वो वस्ल के मंज़र देखे थे बस घर की ही दीवारों ने
मैंने तो लब सी रक्खे थे तुमने ही ये चर्चा आम किया

जो पी कर रोज़ बहकते थे वो रौनके महफ़िल बनते रहे
मैंने तो पिए थे अश्क तेरे क्यूँ मुझको शराबी नाम दिया

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