थे पहले से भी ज़ख्म कई फिर तेरी नज़र ने काम किया
कुछ तो हम भी दीवाने थे कुछ तुमने भी बदनाम किया
वो वस्ल के मंज़र देखे थे बस घर की ही दीवारों ने
मैंने तो लब सी रक्खे थे तुमने ही ये चर्चा आम किया
जो पी कर रोज़ बहकते थे वो रौनके महफ़िल बनते रहे
मैंने तो पिए थे अश्क तेरे क्यूँ मुझको शराबी नाम दिया
कुछ तो हम भी दीवाने थे कुछ तुमने भी बदनाम किया
वो वस्ल के मंज़र देखे थे बस घर की ही दीवारों ने
मैंने तो लब सी रक्खे थे तुमने ही ये चर्चा आम किया
जो पी कर रोज़ बहकते थे वो रौनके महफ़िल बनते रहे
मैंने तो पिए थे अश्क तेरे क्यूँ मुझको शराबी नाम दिया
No comments:
Post a Comment