क्या बताएं तुम्हे इस पल कि कैसा है समंदर
सूरत बदलती जाती है हर एक लहर के बाद
चढी है धूप गुलों से लग लो गले जी भर के
सिर्फ साये ही मिलेंगे तुम्हे दोपहर के बाद
दो चार लमहे गुज़रे हैं पी कर न कर गुरूर
लाती है रंग अपना मय पूरे असर के बाद
कुछ इस क़दर मसरूफ हुआ है ये आदमी
मिलता है ढले शाम ही अब तो सहर के बाद
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