खड़े रह गए यूँ ही दरिया किनारे
नादाँ थे हम पार करना न आया
झुकी उन निगाहों के भीगे इशारे
एक हम थे हमें प्यार करना न आया
संवर कर वो आये तसव्वुर में मेरे
क्यूँ मेरी नज़र को संवरना न आया
खुली चांदनी थी और इठलाती लहरें
हमें झील में ही उतरना न आया
चमन में खिले थे गुलाबों के गुंचे
मेरे रूप को तब निखरना न आया
बहकती हवाओं ने शाखें हिलाईं
हमें वादियों में बिखरना न आया
चमन में खिले थे गुलाबों के गुंचे
मेरे रूप को तब निखरना न आया
बहकती हवाओं ने शाखें हिलाईं
हमें वादियों में बिखरना न आया
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