मैं तंग आ गया हूँ अब तेरी दुश्मनी से
मुझे बख्श दे ऐ ज़माने
जितने थे सीधे आकर जिगर पर लगे
कितने सच्चे थे तेरे निशाने
मैं कुछ चाहता हूँ वो कुछ सोचता है
रब की मर्ज़ी तो कोई न जाने
कोशिशें कर रहा था तुझे भूल जाऊं
मुझे बख्श दे ऐ ज़माने
जितने थे सीधे आकर जिगर पर लगे
कितने सच्चे थे तेरे निशाने
मैं कुछ चाहता हूँ वो कुछ सोचता है
रब की मर्ज़ी तो कोई न जाने
कोशिशें कर रहा था तुझे भूल जाऊं
तू याद आ गया इस बहाने
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