चढ़ता है आफताब तो झुकती है ये दुनियाँ
तू बन एक ऐसी शाम हो जिसका एहतराम
भरता जा तू दिलों में पैग़ामे मोहब्बत
जब जाए इस जहाँ से ज़माना करे सलाम
हक़ीक़त को आंकने के नज़रिए में फ़र्क़ है
आधा है जो खाली वही आधा भरा है जाम
इस दुनिया ए फ़ानी के हैं अंदाज़ निराले
आने के साथ होता है जाने का इंतज़ाम
मत रो ऐ मेरी आँख , छिपा ले ये आंसू
ये भीगी हवाएं तुझे कर डालेंगी बदनाम
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