ग़र मैंने की ख़ताएँ मुझको मुआफ़ कर दे
अब और तेरी दुश्मनी मुझसे नहीं निभेगी
बेनूर ज़िंदगी में रंग की कमी बहुत है
तेरी दोस्ती की चाहत मुझे उम्र भर रहेगी
पूछेगी ज़िन्दगी जब गुनाह उम्र भर के
मैं उससे क्या कहूँगा वो मुझसे क्या कहेगी
एक रौशनी की क़ीमत दोनों को देनी होगी
परवाने भी जलेंगे और शम्मा भी जलेगी
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