तनहाइयों को लगा गले हम राहे शौक़ से गुज़र गए
बदनामियों का जिन्हें खौफ़ था वो बीच ही में ठहर गए
सारी उम्र काली रातों में जिन्हें ज़िंदगी की तलाश थी
खुली धूप लाई नयी सुबह तो वो रौशनी से ही डर गए
मैंने पूछा बहती बयार से ,मेरे साथ थे वो किधर गए
मुझे हंस के यूँ बहला गई ,या उधर गए या इधर गए
जो ग़र इंतिहा ऐ ज़ुल्म हो , अब कोई कुछ कहता नहीं
लगता है लोग शहर के अपनी मौत से पहले मर गए
बदनामियों का जिन्हें खौफ़ था वो बीच ही में ठहर गए
सारी उम्र काली रातों में जिन्हें ज़िंदगी की तलाश थी
खुली धूप लाई नयी सुबह तो वो रौशनी से ही डर गए
मैंने पूछा बहती बयार से ,मेरे साथ थे वो किधर गए
मुझे हंस के यूँ बहला गई ,या उधर गए या इधर गए
जो ग़र इंतिहा ऐ ज़ुल्म हो , अब कोई कुछ कहता नहीं
लगता है लोग शहर के अपनी मौत से पहले मर गए
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