रात गुमसुम ढल रही है करवटें लेता बदन
अब सुनायी दे रही है दिल की भी आवाज़ कम
बेरहम तनहाइयां ये दे रही हैं मशविरा
तेरी यादों के क़फ़न अब ओढ़ कर सो जाएँ हम
मेरे माथे की लकीरों में छिपे हैं मेरे घाव
मेरी आँखों की नमी में घुल गए हैं मेरे ग़म
तुम भी रोये मैं भी रोया ,थीं फ़क़त आँखें जुदा
हमने मिलजुल के उठाये हैं जुदाई के सितम
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