आँख से ओझल है जब परवाज़
क्यूँ भला अब दे रहे आवाज़
सर्द साँसों में सहम कर सो गए
मेरी उस दीवानगी के राज़
एक बस मैं ही सहूँ सारे सितम
कैसा है ये प्यार का अंदाज़
रात रोई है बनी है तब ये शबनम
कितना भीगा सहर का आग़ाज़
तोड़ कर ले जायगा कल बागवाँ
जिन गुलों पर है चमन को नाज़
हैं सितमगर आज सब गद्दीनशीन
आदमी जीने को है मोहताज
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