किसी शराब का उतरा हुआ ख़ुमार हूँ मैं
मुझे न रोकना जाती हुई बहार हूँ मैं
यूँ गुज़र जाऊँगा छू कर के तुम्हारे गेसू
तुम्हारे सहन में बहती हुई बयार हूँ मैं
मेरा नसीब न था तुम भी मेरे हो जाते
तुम्हारे चाहने वालों में एक शुमार हूँ मैं
कभी तो आओगे तुम भी हमारी बस्ती में
मैं मुंतज़िर अभी ज़िंदा हूँ तलबगार हूँ मैं
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