Thursday, 18 August 2011

मुझे न रोकना...

किसी शराब का उतरा हुआ ख़ुमार  हूँ मैं
मुझे न रोकना जाती हुई बहार हूँ मैं

यूँ गुज़र जाऊँगा छू कर के तुम्हारे गेसू
तुम्हारे सहन में बहती हुई बयार हूँ मैं

मेरा  नसीब न था तुम भी मेरे हो जाते   
तुम्हारे चाहने वालों में एक शुमार हूँ मैं
कभी तो आओगे तुम भी हमारी बस्ती में
मैं मुंतज़िर अभी ज़िंदा हूँ तलबगार हूँ मैं   
 
 

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