मैंने फैलाए नहीं हाथ कभी अपने लिए
किसी के अश्क़ जो पी लूँ वो मेरी आदत है
कुछ और देर बना रख मुझे शरीक़े ग़म
ऐसा लगता है कि तुझको मेरी ज़रुरत है
न पूछ मुझसे तू मेरे ज़ख्मों का हिसाब
झुकेगा उम्र भर ये सर तेरे ही दर पे रब
तेरी नज़र जो उठे इस तरफ तो किस्मत है
एक टुकड़ा तो बचा रखिये अपनी ग़ैरत का
सरे बाज़ार जो बिक जाइए तो लानत है
किसी के अश्क़ जो पी लूँ वो मेरी आदत है
कुछ और देर बना रख मुझे शरीक़े ग़म
ऐसा लगता है कि तुझको मेरी ज़रुरत है
न पूछ मुझसे तू मेरे ज़ख्मों का हिसाब
मुझे बता कि तेरे दर्द की क्या हालत है
झुकेगा उम्र भर ये सर तेरे ही दर पे रब
तेरी नज़र जो उठे इस तरफ तो किस्मत है
एक टुकड़ा तो बचा रखिये अपनी ग़ैरत का
सरे बाज़ार जो बिक जाइए तो लानत है
No comments:
Post a Comment