ये सच है मैं मरता हूँ अपने मज़हब पर
राज़ की बात है मज़हब मेरा मोहब्बत है
तेरा जमाल है या मेरी निगाहों का फ़रेब
जिधर भी देखूं नज़र आये तेरी सूरत है
ख़ुद ब ख़ुद झुक ही जाती है गर्दन मेरी
तेरा चेहरा जैसे कोई मज़ारे उलफ़त है
है एक फ़र्क़ मुझमें और अहले दुनियां में
वो देखते हैं चेहरा , दिल में मेरे अक़ीदत है
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