थे इस फिराक़ में गंगा में हाथ धो लेंगे
आज चढ़ते हुए पानी ने धो दिया चेहरा
चले गए सभी अपनी ही अलग राहों में
सच बचाने के लिए एक भी नहीं ठहरा
इतना आसां नहीं है तैर कर जाना
है समंदर तेरे अंदाज़ से कहीं गहरा
किसे है फ़िक्र फ़क़ीरों के जीने मरने की
सब चाहते हैं उन ही के सर बंधे सेहरा
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