मैं कोई मोम के मानिंद नहीं अहले जहाँ
ज़रा सी आग से पिघलूँगा और बह जाऊँगा
जिगर के ख़ून से लिखूंगा तवारीखे वतन
संगे देहलीज़ हूँ दरवाज़े पे रह जाऊँगा
मुझे मिली है तेरे अश्कों से जो इतनी ताक़त
हज़ार ज़ुल्म ज़माने के मैं सह जाऊँगा
हरदम गूंजेगी तेरे ज़ेहन में मेरी आवाज़
प्यार का राज़ तेरे कान में कह जाऊँगा
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