छिप गया सूरज तो देखो रो पडी है धूप
ढल गयी है उम्र अब बे आबरू है रूप
बेरहम है वक़्त की चलती हवा
किसका दामन भीग जाए क्या पता
ऐसा ही होता है हर एक मर्तबा
ज़िंदगी देती है क्यूँ ऐसी सज़ा
दरमियाँ है नींद का लम्बा सफ़र
कल खुली जो आँख तो होगी सहर
कैसे कर दूँ मैं ये वादा शाम से
जश्न कल होगा मेरे ही नाम से
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