इस तरह से बिखरे मुहब्बत के सिलसिले
ले जाए हवा जैसे परिंदों के घोंसले
हो किस तरह तय ये कि गुनहगार कौन था
कुछ मेरी उलझनें थी कुछ तेरे फैसले
खुशियाँ तलाशने को निकले थे घर से हम
क़िस्मत में जो लिखे थे वो सारे ग़म मिले
मैय्यत से गले मिल के रोये थे बहुत लोग
हम चाहते ही रह गए तू भी गले मिले
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