अपने आँचल के उजालों की हिफ़ाज़त के लिए
इन अंधेरों की फितरत को भी समझा करो
मैं मानता हूँ तुम्ही से है वादियों की रौनक
वक़्त बेवक्त बियाबानों में मत निकला करो
खुले बदन की नुमाइश भी ज़रूरी तो नहीं
कौन कहता है कि तुम हमसे अब परदा करो
तुम जियोगे लड़ोगे और सबसे जीतोगे
मेरे जिगर के ऐ टुकड़े ये मुझसे वादा करो
No comments:
Post a Comment