Chithhi
Thursday, 6 December 2012
पहचान बहुत थी
एक शख्स चाहता था माहौल बदलना
दुनियाँ जो साथ में थी नादान बहुत थी
पर्वत पे दूरियों का अंदाज़ ग़लत था
और भीड़ रास्तों से अनजान बहुत थी
वो कह रहा था सच ये बात भी सच है
उसकी दलील बेबसों बेजान बहुत थी
अब कुछ तो सब्र कीजिये इतना न रोइए
मेरी भी मरने वाले से पहचान बहुत थी
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