उम्र भर बेवफ़ाई करता रहा
जिसको मैंने ज़िंदगी समझा
घर मेरा जल रहा था उसने
तमाशा ऐ आतिशी समझा
रोने को मुंह ढका था मैंने
वो इज़हारे खुशी समझा
साग़र पे बरसना फ़िज़ूल है
जिसको मैंने ज़िंदगी समझा
घर मेरा जल रहा था उसने
तमाशा ऐ आतिशी समझा
रोने को मुंह ढका था मैंने
वो इज़हारे खुशी समझा
साग़र पे बरसना फ़िज़ूल है
ये बादल क्यूँ नहीं समझा
उसे मानते थे अहले समझ
सच में जो कुछ नहीं समझा
उसे मानते थे अहले समझ
सच में जो कुछ नहीं समझा
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