ज़ख्म जिसने भी दिए हों तुझको
देख कर उनको शर्मसार हूँ मैं
सर पे इलज़ाम नहीं है फिर भी
ऐसा लगता है गुनहगार हूँ मैं
तेरे बदन पे हुए हैं जितने सितम
हम वतन उनका राज़दार हूँ मैं
मैं हूँ पत्थर मेरी सूरत को बदल
संगतराशी का तलबगार हूँ मैं
ये बात और है कोई कहे न कहे
इस तबाही का ज़िम्मेदार हूँ मैं
देख कर उनको शर्मसार हूँ मैं
सर पे इलज़ाम नहीं है फिर भी
ऐसा लगता है गुनहगार हूँ मैं
तेरे बदन पे हुए हैं जितने सितम
हम वतन उनका राज़दार हूँ मैं
मैं हूँ पत्थर मेरी सूरत को बदल
संगतराशी का तलबगार हूँ मैं
ये बात और है कोई कहे न कहे
इस तबाही का ज़िम्मेदार हूँ मैं
No comments:
Post a Comment