हर बशर की बस यही तक़दीर है
अपने घर में कल टंगी तस्वीर है
वक़्त कहता है चलो चलते रहो
और पैरों में बंधी ज़ंजीर है
मुख़्तसर है मेरे ग़म की दास्ताँ
ये जिगर मेरा और तेरा तीर है
दफ़्न कल मुमताज़ हुई थी जहां
ताज महल हो गया तामीर है
क्यूँ जगाते हो उसे सोने भी दो
ज़िंदगी से थक गया राहगीर है
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