Sunday, 16 December 2012

ग़मों से बोझिल है



न डरा  मुझको गर्दिशे दौरां
मेरी बरबादी मेरी मंज़िल है

जो नहीं है उसी को ढूँढता है
यही तो आदमी की मुश्किल है

मैं मर चुका हूँ ज़माने  पहले 
ढूँढता मुझको अब भी क़ातिल  है

तेरा क़रम है कि हंस लेता हूँ
मेरा बदन ग़मों से बोझिल है

जिनको जाना है तेरी  महफ़िल से
मेरा भी नाम उनमें शामिल है


हैं  तेरे साथ चाहने वाले बहुत
एक मेरे पास अकेला दिल है  





No comments:

Post a Comment