और करता तो ग़म नहीं होता
हम पे अपनों ने सितम ढाए हैं
कल कटेंगे सभी ऊँचे दरख़्त
जो खड़े आज सर उठाये हैं
उड़ने का मुंतज़िर है परिंदा एक
उम्र भर जिसने पर कटाये है
सारी तोहमत मुझ ही पर क्यूँ
तुमने भी फासले बढ़ाये हैं
अपने चेहरे के ये काले धब्बे
तूने खुद हाथ से बनाए हैं
अभी ताज़ा हैं इस बदन पे निशां
तूने जो तीर आज़माए है
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