ये ढलती रात सुनती है ,बिना आवाज की बातें
जो गुल छुप छुप के करते है,चमन की राज़ की बातें
पकड़ कर हाथ इस आंधी में हम किससे कहें आओ
परिंदे बन के तुम हमसे करो परवाज़ की बातें
मुझे तो याद है हर एक लमहा राहे उल्फ़त का
नहीं हैं याद अब उनको ,मोहब्बत की मुलाक़ातें
उधर बादल बरसते थे इधर आँखें बरसती थीं
अलग अंदाज़ से बरसीं मेरे आँगन में बरसातें
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