Monday, 13 June 2011

बिछा कर के प्यार की चादर


बंद आँखों पे बिछा कर के प्यार की चादर
करेंगे हम भी एक रोज़ फ़लक तक का सफ़र
उसी तरहा से चलेगा ये कारवां ऐ जहाँ
एक बस हम ही तुमको नहीं आयेंगे नज़र

यही बस होता चला आया यहाँ सदियों से
कोई ताकत न बदल पाई यहाँ का दस्तूर
बस इतना ही तो है फलसफा ए हयात
मैं भी मजबूर हूँ हालात से तू भी मजबूर

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