इन तेज आँधियों में एक दिया है जल रहा
उसको बचा लो तुम जला कर हथेलियाँ
सब हो चुके फ़ना अब सियाही से जंग में
उजाले की नस्ल का है ये एक आख़िरी निशां
वो रोज़ हड़पता रहा , मेरे घर की भी ज़मीन
मुझको दिखा दिखा के, सितारे और आसमां
अब झूठ और सच में कोई फ़र्क़ नहीं है
एक पतली सी दरार है दोनों के दरमियाँ
सौ झूठ बोल कर के वो पा जाता है इनाम
एक सच जो ग़र हम बोलें तो बनता है एक गुनाह
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