मिल के तुमसे मुझे ग़र बिछड़ना ही था
तो हुई तुमसे मेरी मुलाक़ात क्यूँ
रस्में क़समें तो मैंने निभाईं थी सब
तब गए छोड़ कर तुम मेरा साथ क्यूँ
मैं न बोला ,न रोया न शिकवा कोई
मेरे बारे में इतनी हुई बात क्यूँ
उम्र भर भींचता वो रहा मुठ्ठियाँ
वक्ते आख़िर थे उसके खुले हाथ क्यूँ
शून्य से शून्य तक का सफ़र ज़िन्दगी
फिर भला इस पे इतने सवालात क्यूँ
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