खुशियों का यूँ ख़ैर मक़दम न होता
अगर दिल में पहले से कुछ ग़म न होता
जो शब ग़र न करती सितम हम पे इतना
तो फिर रोशंनी का ये आलम न होता
वो उनकी ज़फाएं उन्ही को मुबारक़
मेरा प्यार जैसा है मद्धम न होता
फ़रिश्ते भी मिलकर जो करते इबादत
ये आना ये जाना मगर कम न होता
अगर दिल में पहले से कुछ ग़म न होता
जो शब ग़र न करती सितम हम पे इतना
तो फिर रोशंनी का ये आलम न होता
वो उनकी ज़फाएं उन्ही को मुबारक़
मेरा प्यार जैसा है मद्धम न होता
फ़रिश्ते भी मिलकर जो करते इबादत
ये आना ये जाना मगर कम न होता
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