Chithhi
Tuesday, 6 March 2012
पत्थर सनम निकला
मुतमइन था तेरा ग़म है कि वो भी मेरा ग़म निकला
समझते थे जिसे हम आशना पत्थर सनम निकला
किसी प्यासे ने साहिल पर कभी एक बूँद माँगी थी
वो राही अब भी प्यासा है समंदर बेरहम निकला
मैं गाफ़िल था मुझे ही रंज है तेरे बिछड़ने का
जो छू कर हाथ से देखा तेरा आँचल भी नम निकला
जो दिल में रखता है बिजली वो बादल आतिशी होगा
जब पानी बन के बरसा तो मेरा ये भी वहम निकला
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