उसी गुलाब में कांटे भी छिपे बैठे हैं
जिस की खुशबू तुझे मदहोश किये जाती है
लोग जो हँसते हुए दिखते हैं इस बस्ती में
उनकी रूहों से सिसकने की सदा आती है
...
हम भी देखेंगे इस बरस ये सावन की हवा
लूटती है हमें या मोतियाँ बरसाती है
ढूंढ के लाओ कोई फिर से नया चारागर
मर्ज़ जाता नहीं है बस दवा बहलाती है
क्या कहें हम तेरी आँखों की शराब
जितना पीते हैं उतनी प्यास बढ़ती जाती है
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