काली काली बदलियों से झांकता सूरज हो जैसे
इस जहां में हो गया बेबस है सच कुछ इस तरह
अश्कों से भीगी है चूनर उनको अब आराम है
काश मेरा मन भिगो देता मुझे भी उस तरह
जिन दरख्तों की क़तारों पर लिखे थे हमने नाम
कट गए वो एक घनी बस्ती बनी है उस जगह
जिस के आने से मिले माज़ूर को कुछ रोटियां
आओ मिलकर ढूंढ के लायें कोई ऐसी सुबह
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