निकल के क़ैद से बैठा है मायूस परिंदा
उड़ने का सलीका उसे अब याद नहीं है
तू खुश है देख कर के दरवाज़े की रौनक
अंदर के अंधेरों का तुझे अंदाज़ नहीं है
सरहद से आ रहा है गोलियों का शोर
तेरे किसी हमदर्द की आवाज़ नहीं है
आई है नये रंग में सैय्यादों की सूरत
जो कल थी तेरे सामने वो आज नहीं है
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