Tuesday, 13 March 2012

आके ज़रा रक्स तो कर


अभी ज़ेहन में बचे हैं कुछ यादों के फूल
सींचते हैं अश्कों से जिनको शामो सहर

उसके अंदाज़े तरन्नुम को बसा लूं दिल में
अभी चलता हूँ तेरे साथ मेरी मौत ठहर
मैं  हवा में तेरी   पायल  की  खनक  सुनता हूँ
मेरी आँखों में कभी आके ज़रा रक्स  तो कर

जाने कब तक है मेरे साथ ये साँसों का सिलसिला
कुछ  बता  कर  तो  हादिसे  नहीं  होते  अक्सर 

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