Chithhi
Thursday, 15 March 2012
ये चंचल हवा भी
बड़ी है शोख़ ये चंचल हवा भी
कि जब देखो नए चेहरे दिखाती है
अगर रुक जाए पिघलता है बदन
जो चलती है तेरा आँचल उड़ाती है
दिल के कांटे तो निकल जाते हैं
पर चुभन उम्र भर सताती है
चढ़ रहा है तेरे शबाब का सूरज
और मेरी शाम ढली जाती है
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