महमान इस ज़मीन के वापस चले गए
सामान तो बहुत था पर कुछ न ले गए
वीरान न हो जाए कहीं शहर ऐ मोहब्बत
दिल में हज़ारों दर्द बसा कर चले गए
बंदगी का मिल ही गया हमको ये सिला
उनके हमारे दरमियाँ थे फासले गए
मेरा वफ़ा की बात तो उनको न रही याद
औरों की दास्तान सुनाते चले गए
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