Monday, 21 November 2011

वो पहली मुलाक़ात

कुछ  लोग सोचते थे  उनसे जहान है 
ना जाने कहाँ खो गए मालूम नहीं
जिनके भी हक़ में आया है ये रैन बसेरा
क्यूँ सब दीवाने हो गए मालूम नहीं 

बादल तो आये थे बिना बरसे चले गए
पलकों को कब भिगो गए मालूम नहीं

भूखी ज़मीन रात भर जगती है किस लिए
जब आसमान सो गए  मालूम नहीं
वो पहली मुलाक़ात मुझे याद है मगर
हम कब तुम्हारे हो गए मालूम नहीं
 
 

No comments:

Post a Comment