Saturday, 19 November 2011

गुलशन अभी बर्बाद नहीं


जब तक खुली हैं आँख तभी तक है ज़माना
गर मैं नहीं तो कुछ भी मेरे बाद नहीं है
बीता हुआ सफ़र है  एक ख्व़ाब की तरह
जो भी है याद ठीक से कुछ याद नहीं है
ख़ारों की क़तारों में हैं पोशीदा कुछ गुलाब
गर्दिश में है गुलशन अभी बर्बाद नहीं है
सदियों से यहाँ लोग तो आयें  हैं  मुसलसल
फिर भी न जाने क्यूँ ये घर आबाद नहीं है

अपनी हद में ही तैर  प्यार के समंदर में
कितना गहरा है कहाँ तुझको ये अंदाज़ नहीं है


 


 






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