Sunday, 4 September 2011

और गीत लिखते रहे

किसी की याद जब आये तो नींद क्यूँ आये
खुली थी आँख हमें फिर भी ख्वाब दिखते रहे

छिपा के ज़ेहन में रखते हम भला कितने राज़
उठायी दिल की क़लम और गीत लिखते रहे

थी ख़ाली जेब किसे बेचते अपने आंसू
यही शहर है जहाँ रोज़ प्यार बिकते रहे

आज निकलोगे जो घर से तो साथ हो लेंगे
बस यही सोच के हम तेरे दर पे रुकते र
हे

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